प्रथम
Wednesday 18 March 2015
"वसुधैव कुटुम्बकम" की अवधारणा यूँ ही अनायास नहीं उपजी है। यह एक संस्कृति है जो हमें विरासत में मिली है। इसके मूल में हमें हर व्यक्ति को समान अवसर और सम्मान देना पड़ता है। इसी परिप्रेक्ष्य में इस कविता रूपी ग़ज़ल या ग़ज़ल रूपी कविता को अपनाइये, आनन्द आयेगा।
Monday 9 March 2015
कभी कभी हम ये मान कर चलते हैं कि हमें जितना करना था या जो हमारा कर्तव्य था, हमने पूरा कर दिया, मगर ऐसा है नहीं। कर्तव्यों की इतिश्री नहीं होती।
Monday 2 March 2015
एहसान एक ऐसा ॠण है जिसे चुकाया नहीं जा सकता। पर कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें एहसान फ़रामोश कहने में इसलिये कोई संकोच नहीं होता क्योंकि उनके कृत्य ही ऐसे होते हैं। ये ग़ज़ल उन्हीं पर लिखी गयी। शेष अन्यथा न लें।
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