"वसुधैव कुटुम्बकम" की अवधारणा यूँ ही अनायास नहीं उपजी है। यह एक संस्कृति है जो हमें विरासत में मिली है। इसके मूल में हमें हर व्यक्ति को समान अवसर और सम्मान देना पड़ता है। इसी परिप्रेक्ष्य में इस कविता रूपी ग़ज़ल या ग़ज़ल रूपी कविता को अपनाइये, आनन्द आयेगा।
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