Thursday 9 April 2015

'खुशियों' का 'एहसास', 'प्यार' के दो 'मीठे बोल', इन हरीभरी 'वादियों' में 'प्रकृति' की रूह से मुलाक़ात, 'वक़्त' यानी 'समय' के साथ क़दम बढाने से ही 'मंज़िल' के पास पहुँचने का 'विश्वास' बढेगा। मेरे ये अल्फ़ाज़ आपकी ज़िन्दगी में कोई अहमियत रखते हों या न रखते हों, इनसे आप अपने आप को अलग भी नहीं कर पायेंगे। मेरे ये ग्यारह मुक्तक/अशआर बड़ी साफ़गोई से बयां कर रहे हैं। इरशाद। 'शुक्रिया'।







1 comment: