प्रथम
Wednesday 21 January 2015
कृष्ण के प्रेम में कितना कुछ लिखा पढ़ा गया , कितना कुछ सुना गया, सब कुछ अधूरा सा लगता है। लीलाधर की लीला ही ऐसी है। मेरा स्नेह मेरा एक छोटा सा प्रयास इन पंक्तियों में ढ़ूँढ़िये।
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment