Thursday 8 January 2015

श्रीलाल शुक्ल जी के उपन्यास राग दरबारी के नाम पर ये एक छोटी सी ग़ज़ल उन्हें मेरी ओर से एक तुच्छ भेंट है। काश तंज़ की बारीक़ियाँ समझ कर हम आनंद ले पाते।


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