Saturday 7 February 2015

कुछ तुकबन्दियाँ दिल के करीब होती हैं, इन्हें ग़ज़ल, नज़्म, गीत या कोई भी नाम दीजिये, कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। अन्तर है सिर्फ़ उन लम्हों का जब ये पंक्तिबद्ध होते हैं।


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