अच्छा नहीं लगा जब किसी ने ये लिखा कि "नहीं था, तो यही पैसा नहीं था, नहीं तो आदमी में क्या नहीं था"। मुझे नहीं लगता कि इन्सानियत को इतना कमज़ोर और कमतर आँका जा सकता है। निराशावादी होना कुछ हद तक ही काबिलेबर्दाश्त होता है। आखिर ज़िन्दगी में इतना कुछ है फिर भी लोगों को दिखता क्यों नहीं।
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