Friday 19 December 2014

गुलज़ार जी की एक नज़्म आजकल वायरल हो रही है। इसमें उन्होंने पुराने समय में क़िताबों से मुहव्बत की दास्तान सुनाई है। "पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय" कबीर बहुत पहले ही लिख के चले गये हैं। इसे ध्यान में रख कर ही मेरी इस छोटी सी कोशिश को पुराने लोगों के पोथी प्रेम पर नज़रे इनायत करियेगा।


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