दहशतगर्दों के नाम लिये तो जायेंगे मग़र सिर्फ़ नफ़रत से, क्यों कि वे नफ़रत ही तो फ़ैलाते हैं। धर्म की आड़ लेना इनकी मज़बूरी है, हमारी समझ में न जाने कब ये बात आयेगी। काश इन्हें ऐसी मौत मिले जिसका इन्हें एहसास तक न हो, उसके पहले इन्हें कोई मज़हब का असली मतलब समझा देता।
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